स्कूल खत्म करके कॉलेज में जैसे ही मेरा पहुँचना हुआ, तो वहाँ लड़कियों को देख के मन हिलोरे मारने लगा।
क्योंकि मैं शुरू से बॉयज स्कूल में पढ़ता था। तो मन में कुछ इच्छायें जागने लगी।
धीरे धीरे कॉलेज में 3 महीने बीत गए और मैं तमाम कोशिशों के बाद भी एक भी गर्लफ्रैंड नहीं बना पाया। लेकिन में पढ़ाई में शुरू से ठीक था । तो सारे कार्य और फाइल पूरे थे।
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इसी दौरान एक लड़की का आगमन हमारी क्लास में हुआ। रंग थोड़ा सांवला, बड़ी बड़ी आँखें और थोडी पे तिल, साधारण सूट में वह आसाधारण लग रही थी।
जैसे ही वो मेरे पास से गुजरी, एक गाना मेरे दिमाग मे चल गया, 'पहला नशा,पहला खुमार,नया प्यार है, नया इंतेज़ार...
फिर में उसे रोज चुपके-चुपके देखता था, पर बात करने की हिम्मत नहीं थी .
एक दिन वो खुद आई और बोली के मुझे कुछ फाइल्स चाहिए. में लेट आई हूँ collage में तो काम पूरा नहीं है. मुझे नोट्स भी बनाने है.
मेने तुरंत फाइल्स दे दी मगर दुखद या अच्छी बात ये थी की मेरा लिखावट हमेशा बहुत गन्दी रही है, तो वो कुछ देर बाद बोली के राघव, आपका नंबर मिल सकता है क्या?
क्यूंकि मुझे इसमें अगर कुछ भी समझ नहीं आत है तो में फ़ोन कर लुंगी.
मेने खुद से कहा, वह यादव जी आज तो कमाल हो गया, मेने अपनी आंतरिक ख़ुशी को रोकते हुए नम्बर दे दिया. फिर क्या शाम को उन मोहतरमा का फ़ोन आया और बातों का सिलसिला शुरू हो गया.
धीरे-धीरे हमारे रिश्ते और भी मजबूत होते गए. एक दिन मेने हिम्मत कर उससे अपने प्यार का इजहार और दिली भावनाओं को व्यक्त की, जो उसने सह्रिदेय सहज स्वीकार भी की.
हमने स्नातक,परा-स्नातक और भी कई कोर्स साथ ही किये. इन सालों में वो मुझे समझ चुकी थी और में उसे.
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मेरे बहुत कठिन समय में भी वह हमेशा मेरे साथ रही, मेरे पीछे मेरी एक ढाल बनके कड़ी रही और तो और मेरे संघर्ष के दिनों में जब भी में बिखरा या टूटा उसने मेरे आत्मविश्वास को बढाया और पूरा मनोबल दिया.
वो एक तरह से रिश्तों की किश्त नहीं, मेरी ज़िन्दगी की किताब का वो आवरण बन गयी जिसके बिना किताब सुरक्षित नहीं है.
खैर में कालांतर में मेहनत कर सेना में आ गया और आपार मुसीबतों और समस्यनों के बाद हमने शादी कर ली.आज वो सांवली सी तीखे नैन-नक्श वाली लड़की मेरी अर्धांगनी है और मेरी सबसे प्यारी मित्र भी.
ज़िन्दगी आपको रिश्तों को समझने के मौके बहुत देती है और ऐसे इन्सान भी देती है जिनके सहारे आप अपना जीवन उच्च न सही, सरल तो बना सकते हैं.
ये समझ आपको पैदा करनी है की मिद्या रिश्तों को ढोना है और "रिश्तों के भराम" में रहना है या एक नायाब और लाजवाब रिश्ता लेकर बढ़ना है.. और में, हाँ में हमेशा भार्या को देख कर यही गाता हूँ "जरा सी सांवरी है वो, जरा सी बावरी है वो"..
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